Hi! Friends,
I don't remember the name of this poem, but I remembered the poet's name.
We had it taught in our 8th class of CBSE Hindi syllabus.
Kindly help me recollect the Poem's name.
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
I don't remember the name of this poem, but I remembered the poet's name.
We had it taught in our 8th class of CBSE Hindi syllabus.
Kindly help me recollect the Poem's name.
क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा,
पर नर-व्याध सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ कब हारा |
क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम हुए विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही |
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन
विषहीन, विनीत, सरल हो |
तीन दिवस तक पथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे ,
बैठे पढ़ते रहे छंद
अनुनय के प्यारे प्यारे
उत्तर के जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से,
उठी धधक अधीर पौरुष की
राम के शर से |
सिंधु देह धर "त्राहि-त्राहि"
कहता आ गिरा चरण में,
चरण पूज, दासता ग्रहण की
बंधा मूढ़ बंधन में |
सच पूछो तो शर में ही
बस्ती है दीप्ति विनय की,
संधि-वचन संपूज्य उसी का,
जिस में शक्ति विजय की |
I had reproduce this text after visiting site http://www.angdesh.com/ramdhari-singh-dinkar.html
Also I have few quadruplets, kindly point me to the original part of it.
पर नर-व्याध सुयोधन तुमसे
कहो कहाँ कब हारा |
क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम हुए विनत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही |
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन
विषहीन, विनीत, सरल हो |
तीन दिवस तक पथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे ,
बैठे पढ़ते रहे छंद
अनुनय के प्यारे प्यारे
उत्तर के जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से,
उठी धधक अधीर पौरुष की
राम के शर से |
सिंधु देह धर "त्राहि-त्राहि"
कहता आ गिरा चरण में,
चरण पूज, दासता ग्रहण की
बंधा मूढ़ बंधन में |
सच पूछो तो शर में ही
बस्ती है दीप्ति विनय की,
संधि-वचन संपूज्य उसी का,
जिस में शक्ति विजय की |
-- रामधारी सिंह दिनकर
I had reproduce this text after visiting site http://www.angdesh.com/ramdhari-singh-dinkar.html
Also I have few quadruplets, kindly point me to the original part of it.
गीता में जो त्रिपटकनिकाय पढ़ते हैं
बंदुक गला कर तकलियाँ गढ़ते हैं
यह पाप उन्ही का हमको मार गया है
भारत आपने ही घर में हार गया है
Another one...
बंदुक गला कर तकलियाँ गढ़ते हैं
यह पाप उन्ही का हमको मार गया है
भारत आपने ही घर में हार गया है
आप हर आवेग पर यूँ डुल ना जाना सीखिए
ये मैं नहीं कहता, इतिहास कहता आपसे,
आप अपनी भावना पर, पुल बनाना सीखिए |
ये मैं नहीं कहता, इतिहास कहता आपसे,
आप अपनी भावना पर, पुल बनाना सीखिए |